Thursday 5 July 2018

||भक्त थी तुम्हारी, दासी नही ||

बाँटना आता हैं,मांगना सिखा नही |
देकर खुश होती हूँ, पाना सिखा नही ||

समझो तो आदर समझ लो, 
नही तो मजाक सही |
पर जिस दिन दासी समझो मुझे,
सम्मान भी जाएगा और आदर भी ||

समझो तो स्नेह समझ लो, नहीं तो ठिठोली सही,
पर मेरी यह बात याद रखना भूलना नही |
कहना तो और बहुत चाहती हूँ,कैसे कहूं,
हर बात बोलकर बताना जरुरी तो नही ||

अलविदा कहने की भी जरुरत नही ,
जरुरी हो तो भी सामर्थ्य नही |
भरोसा करने की तुममे ताकत नही,
फिर भी कोई गिलाशिकवा नही ||

रोकने का तो हक़ नही, साथ चल लेती मगर 
वादे कुछ खुद से किये हैं, झुठला सकती नही |
गरूर की चिंगारी तो कभी थी ही नही,
स्वाभिमान की लौ अभी बुझी नही |

जो मैने सिखा उस के लिए धन्यवाद,
मेरे बाद जीवन तुम्हारा,रहे आबाद |
भूल भी जाओ मुझे तो गम नही,
भक्त थी तुम्हारी, दासी नही ||


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